घोरघट (मुंगेर): बिहार के ऐतिहासिक गांव घोरघट में शनिवार को एक असमंजसपूर्ण स्थिति तब उत्पन्न हो गई जब वोटर अधिकार यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का काफिला वहां बिना रुके निकल गया। यह वही स्थल था जहां देश के संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की बिहार की सबसे ऊंची आदमकद प्रतिमा का अनावरण प्रस्तावित था। स्थानीय जनता इस क्षण का लंबे समय से इंतजार कर रही थी, लेकिन जब राहुल और तेजस्वी वहां नहीं रुके, तो लोगों में निराशा की लहर दौड़ गई।
पप्पू यादव ने निभाई जिम्मेदारी, किया अनावरण
इस चूक को संज्ञान में लेते हुए पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने संवेदनशीलता और नेतृत्व का परिचय देते हुए काफिले से अलग होकर घोरघट गांव में रुककर 12 फीट ऊंची बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा का विधिवत अनावरण किया। उन्होंने न केवल स्थानीय जनता से संवाद किया, बल्कि “बाबा साहब अमर रहें” के नारों के साथ पूरे आयोजन को सम्मानजनक रूप प्रदान किया।
बिहार की सबसे ऊंची अंबेडकर प्रतिमा
यह प्रतिमा 24 फीट ऊंचे पेडस्टल पर स्थापित की गई है, जिससे इसकी कुल ऊंचाई 36 फीट हो जाती है। इसे राज्य की अब तक की सबसे ऊंची अंबेडकर प्रतिमा माना जा रहा है। आयोजन की विशेषता यह थी कि इसके अनावरण के लिए राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का नाम पहले से शिलालेख पर अंकित था। स्थानीय जनता ने कई दिनों की मेहनत और तैयारियों के बाद इस आयोजन को ऐतिहासिक रूप देने की योजना बनाई थी।
ग्रामीणों की भावनाएं और प्रतीक्षा
घोरघट के ग्रामीणों की उम्मीदें इस कार्यक्रम से जुड़ी थीं। आयोजक डॉ. सोमनाथ आर्य, जो स्वयं इसी गांव के निवासी हैं, ने बताया कि “हमने सोचा था कि जैसे इस गांव ने कभी गांधी जी को ऐतिहासिक लाठी भेंट की थी, वैसे ही आज हम राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को वह प्रतीकात्मक लाठी सौंपेंगे। वह लाठी हमारे लोकतंत्र के रक्षक नेताओं को सशक्त करने का प्रतीक बनेगी।”
उन्होंने कहा कि “हमारे पूर्वजों ने जिस प्रकार अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए लाठी थामी थी, आज हम उसे वोट की ताकत और लोकतंत्र की सुरक्षा के प्रतीक के रूप में सौंपना चाहते थे।”
राहुल-तेजस्वी की चूक या चुपचाप बदलाव?
हालांकि अभी तक इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी है कि काफिला बिना रुके क्यों निकल गया। कुछ स्थानीय सूत्रों का कहना है कि समय की कमी के चलते यह निर्णय लिया गया, तो कुछ लोगों का मानना है कि यह केवल कार्यक्रम समन्वय की चूक थी।
इस घटना ने जहां एक ओर लोगों को निराश किया, वहीं दूसरी ओर पप्पू यादव के कदम ने जनता के बीच एक सकारात्मक संदेश भी छोड़ा। उन्होंने न केवल कार्यक्रम की गरिमा को बनाए रखा, बल्कि राजनीतिक संवेदनशीलता का भी परिचय दिया।
घोरघट का ऐतिहासिक महत्व
घोरघट गांव केवल इस आयोजन के कारण नहीं, बल्कि अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। यह वही गांव है जहां महात्मा गांधी को ग्रामीणों ने लाठी भेंट की थी, जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनका प्रतीक बन गई थी। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ग्रामीणों ने आज के लोकतंत्र सेनानियों को लाठी देने का निर्णय लिया था – एक सांकेतिक परंपरा, जो राजनीति में मूल्यों और संघर्ष की याद दिलाती है।
वोटर अधिकार यात्रा और इसका संदेश
‘वोटर अधिकार यात्रा’ का मुख्य उद्देश्य है – देशभर में मतदाता जागरूकता को बढ़ावा देना और लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत करना। राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू हुई यह यात्रा बिहार में एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंची है। लेकिन ऐसे प्रतीकात्मक स्थलों और आयोजनों से जुड़ाव की अपेक्षा अधिक थी।
सामाजिक संदेश और राजनीतिक जिम्मेदारी
इस पूरे प्रकरण में एक बड़ा संदेश यह भी सामने आता है कि भले ही राष्ट्रीय नेता योजनाबद्ध कार्यक्रमों में व्यस्त हों, लेकिन ज़मीनी हकीकत और जनता की भावनाओं को समझना भी उतना ही आवश्यक है। ग्रामीणों की वर्षों की मेहनत, मूर्ति स्थापना, और प्रतीकात्मक लाठी का कार्यक्रम केवल औपचारिकता नहीं था, बल्कि यह उनके आत्मसम्मान और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ा था।
घटना के दृश्य और जन प्रतिक्रिया
इस आयोजन में बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे, जिनके चेहरों पर कार्यक्रम के स्थगित होने से पहले मायूसी और फिर पप्पू यादव के आगमन के बाद संतोष देखा गया। सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर चर्चा गर्म है – जहां एक ओर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की आलोचना हो रही है, वहीं पप्पू यादव की तारीफ भी हो रही है कि उन्होंने स्थानीय भावना का मान रखा।
डॉ. सोमनाथ आर्य की अपील
डॉ. सोमनाथ आर्य ने अंत में कहा, “हम किसी दल विशेष से जुड़कर यह आयोजन नहीं कर रहे थे। यह आयोजन भारतीय लोकतंत्र, संविधान और बाबा साहब के प्रति श्रद्धा का प्रतीक था। हम चाहते हैं कि नेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जन भावनाओं का सम्मान करें।”
निष्कर्ष:
घोरघट गांव में जो कुछ हुआ, वह केवल एक कार्यक्रम से अधिक था। यह एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को जीवंत करने का प्रयास था। हालांकि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का वहां न रुकना एक चूक के रूप में सामने आया, लेकिन पप्पू यादव की समय पर पहल ने स्थिति को संभाल लिया। इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया कि जनसंवेदना, नेतृत्व और इतिहास का सम्मान – ये तीनों राजनीति के स्थायी मूल्य हैं, जिन्हें कभी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।