मुंगेर (बिहार): गंगा नदी का जलस्तर इन दिनों लगातार बढ़ रहा है और इसका सबसे भीषण असर बिहार के मुंगेर जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत कुतलूपुर दियारा क्षेत्र में देखा जा रहा है। वार्ड नंबर छह के सैकड़ों ग्रामीण इस समय गंगा कटाव से त्रस्त हैं। कई परिवारों के घर, झोपड़ियां और खेती वाली जमीन गंगा में समा चुकी है। हालात इतने भयावह हैं कि लोग रातभर जागकर नदी के किनारे की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए हैं।
गंगा का रौद्र रूप और कटाव की रफ्तार
ग्रामीणों के अनुसार इस बार गंगा के बढ़ते जलस्तर ने गांव को पूरी तरह संकट में डाल दिया है। इलाहाबाद से पटना तक गंगा के पानी में जहां कमी आनी शुरू हो गई है, वहीं मुंगेर में जलस्तर अब भी तेज़ी से बढ़ रहा है। इसी वजह से कुतलूपुर दियारा के छह नंबर वार्ड में कटाव की रफ्तार बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
ग्रामीणों का कहना है कि इस आपदा में अब तक लगभग 20 से 25 घर पूरी तरह गंगा में समा चुके हैं, जबकि कई और मकान अभी भी कटाव की जद में हैं। कभी भी ये घर नदी की धार में बह सकते हैं।
छह भाइयों का घर भी नदी में समाया
गांव के लोगों ने भावुक होकर बताया कि गंगा ने उनका सबकुछ छीन लिया। छह भाइयों का साझा घर, खेती-बाड़ी की जमीन और मेहनत की कमाई से बनी झोपड़ियां कुछ ही घंटों में नदी की लहरों में समा गईं।
ग्रामीण सुरजीत ने मीडिया से बात करते हुए कहा –
“हम लोग अब पूरी तरह बेघर हो चुके हैं। बकरी तक बचाने का मौका नहीं मिला। बच्चों और परिवार को किसी तरह सुरक्षित निकाल पाए। हमारे पास अब न घर है, न जमीन। बस आस है कि सरकार हमारी मदद करेगी और कहीं हमें बसाएगी।”
रातभर जागकर कर रहे निगरानी
गांव के लोगों के लिए रातें और भी कठिन हो गई हैं। कटाव की आशंका से लोग पूरी रात नींद नहीं ले पा रहे। महिलाएं और पुरुष मिलकर नदी किनारे कटाव की ओर नजर बनाए रहते हैं ताकि किसी अनहोनी से पहले परिवार को सुरक्षित निकाल सकें।
संपत्ति पासवान नामक एक ग्रामीण ने बताया –
“गांव में हालात बहुत खराब हैं। लगभग 25 घर गिर चुके हैं। बाकी घर भी खतरे में हैं। SDRF की टीम आई थी, लेकिन हालात पर काबू नहीं पा सके। प्रशासन ने कुछ कटाव रोधी काम जरूर शुरू किए हैं, मगर समस्या बहुत बड़ी है।”
जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर लगाई गुहार
कटाव से पीड़ित सैकड़ों ग्रामीणों ने मंगलवार को मुंगेर जिलाधीश (DM) कार्यालय पहुंचकर अपनी समस्या रखी। ग्रामीणों ने साफ कहा कि गंगा ने उनका सबकुछ छीन लिया है और अब उनके पास रहने के लिए जमीन या घर नहीं बचा है।
उन्होंने प्रशासन से मांग की कि –
- कटाव पीड़ित परिवारों को जमीन उपलब्ध कराई जाए ताकि वे नई जगह पर बस सकें।
- क्षतिपूर्ति राशि दी जाए जिससे वे दोबारा अपने जीवन को पटरी पर ला सकें।
- पुनर्वास की ठोस व्यवस्था हो, ताकि परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर न हों।
प्रशासन की तैयारियां और चुनौतियां
जिला प्रशासन ने प्रभावित इलाके में SDRF और अन्य टीमों को तैनात किया है। कटाव रोकने के लिए बालू से भरे बोरे और अन्य तकनीकी उपाय अपनाए जा रहे हैं। साथ ही, गांव के लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील भी की जा रही है।
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि अब तक जो कदम उठाए गए हैं, वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। कटाव की गति इतनी तेज है कि हर दिन नई जमीन और घर नदी में समा रहे हैं।
गंगा किनारे के गांवों में हर साल दोहराता है संकट
बिहार में गंगा और इसकी सहायक नदियों का कटाव हर साल हजारों लोगों को बेघर कर देता है। खासकर मुंगेर, भागलपुर, कटिहार और खगड़िया जैसे जिलों में यह समस्या विकराल रूप लेती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा का प्रवाह और जलस्तर नियंत्रित करने के लिए दीर्घकालिक योजना की जरूरत है। अभी तक जो अस्थायी उपाय किए जा रहे हैं, वे स्थायी समाधान नहीं हैं।
“हमारा गांव मानचित्र से मिट जाएगा” – ग्रामीण
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि अगर हालात यही रहे, तो जल्द ही कुतलूपुर दियारा मानचित्र से गायब हो जाएगा। खेत-खलिहान, घर-द्वार और मंदिर सबकुछ नदी में बह जाएगा।
एक महिला ग्रामीण ने आंसू पोंछते हुए कहा –
“हमारे बच्चे अब कहां जाएंगे? स्कूल, खेत, घर – सब तो खत्म हो गया। हमें डर है कि हमारा गांव ही कहीं इतिहास न बन जाए।”
विशेषज्ञों की राय
जल संसाधन विभाग के विशेषज्ञ बताते हैं कि गंगा कटाव का मुख्य कारण नदी की धारा में अचानक बदलाव और लगातार बढ़ता जलस्तर है। मानसून के दौरान पानी की तेज धार किनारों को काट देती है और पूरी बस्तियां इसमें बह जाती हैं।
उनका मानना है कि –
- नदी के किनारे स्थायी बांध और तटबंध बनाने होंगे।
- गांवों को कटाव-रोधी ढांचे से सुरक्षित करना होगा।
- पीड़ित परिवारों के लिए स्थायी पुनर्वास नीति लागू करनी होगी।
निष्कर्ष
मुंगेर के कुतलूपुर दियारा गांव की तस्वीर आज पूरे बिहार के गंगा किनारे बसे गांवों की हकीकत बयां कर रही है। जहां एक ओर लोग अपनी मेहनत की कमाई से बने घरों को आंखों के सामने नदी में समाते देख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन पर दबाव है कि वह जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए।
ग्रामीणों की मांग साफ है –
- उन्हें सुरक्षित जमीन दी जाए
- उचित मुआवजा मिले
- और परिवारों को नई शुरुआत करने का मौका दिया जाए।
यह संकट केवल प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि सामाजिक और मानवीय त्रासदी भी है। गंगा कटाव से हर साल हजारों लोग प्रभावित होते हैं। सवाल यह है कि कब तक यह कहानी दोहराई जाती रहेगी और कब मिलेगा इन ग्रामीणों को स्थायी समाधान?








