नई दिल्ली, 23 अगस्त 2025: भारत के लोकतंत्र के इतिहास में अपना अमिट योगदान देने वाले पूर्व लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ की जयंती के अवसर पर आज संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में एक गरिमामय श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राज्यसभा के उप सभापति श्री हरिवंश, लोकसभा महासचिव श्री उत्पल कुमार सिंह, संसद सदस्यों, पूर्व सांसदों और लोकसभा एवं राज्यसभा सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने श्रद्धासुमन अर्पित कर डॉ. जाखड़ को भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
यह आयोजन न केवल एक राजनेता के योगदान को सम्मानित करने का प्रतीक था, बल्कि यह भारत की संसदीय परंपराओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति भी था। डॉ. बलराम जाखड़ का जीवन भारतीय लोकतंत्र की उन कहानियों में से है जो समय के साथ और अधिक प्रेरणादायक बनती जाती हैं।
डॉ. बलराम जाखड़: एक प्रेरणादायक संसदीय यात्रा
डॉ. बलराम जाखड़ का जन्म 22 जनवरी 1922 को हुआ था। वे एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे और उन्होंने भारतीय राजनीति में एक लंबी और प्रभावशाली पारी खेली। डॉ. जाखड़ को 22 जनवरी 1980 को सातवीं लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित किया गया था। उन्होंने 15 जनवरी 1985 तक इस पद पर कार्य किया।
उनके नेतृत्व की कुशलता और संसदीय कार्यवाही में उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें 16 जनवरी 1985 को पुनः सर्वसम्मति से आठवीं लोकसभा के अध्यक्ष पद पर निर्वाचित किया गया। इस बार वे 18 दिसंबर 1989 तक इस पद पर बने रहे।
भारतीय लोकतंत्र में अनूठा स्थान
डॉ. बलराम जाखड़ को स्वतंत्र भारत के पहले और एकमात्र ऐसे लोकसभा अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है, जिन्होंने लगातार दो लोकसभाओं के पूर्ण कार्यकाल में अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाई। यह तथ्य उन्हें भारतीय संसद के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है।
उनकी अध्यक्षता में लोकसभा ने कई महत्वपूर्ण विधायी कार्यों को पूर्णता प्रदान की। डॉ. जाखड़ का संसदीय नियमों और प्रक्रियाओं पर गहरा अधिकार था, जिससे उन्होंने कार्यवाही को सुचारु और प्रभावी रूप से संचालित किया।
कृषि मंत्री के रूप में योगदान
डॉ. जाखड़ का जीवन केवल संसदीय राजनीति तक सीमित नहीं रहा। वे 1991 से 1996 तक दसवीं लोकसभा के दौरान भारत सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री के पद पर भी आसीन रहे। इस दौरान उन्होंने देश की कृषि नीतियों को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी पृष्ठभूमि एक किसान परिवार से होने के कारण उन्हें ग्रामीण भारत की समस्याओं की गहरी समझ थी, जिसका लाभ उन्होंने नीति निर्धारण में बखूबी उठाया।
निधन और स्मृति चिह्न का अनावरण
डॉ. बलराम जाखड़ का निधन 3 फरवरी 2016 को हुआ। उनकी स्मृति को अमर बनाने हेतु भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा 10 फरवरी 2014 को उनका चित्र संसद के केंद्रीय कक्ष में अनावृत किया गया था। यह चित्र आज भी संसद में मौजूद जनप्रतिनिधियों को भारतीय लोकतंत्र के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है।
राजनीतिक जीवन में मूल्यों की मिसाल
डॉ. जाखड़ का जीवन मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित राजनीति का प्रतीक है। उन्होंने हमेशा संसदीय मर्यादाओं का पालन करते हुए विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संतुलन बनाए रखा। उनकी नेतृत्व क्षमता और निष्पक्ष सोच ने उन्हें सभी पक्षों का सम्मान दिलाया।
लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सभी सदस्यों को समान अवसर प्रदान किया और बहस को सार्थक दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी अध्यक्षता में लोकसभा को ‘विचारों की प्रयोगशाला’ के रूप में देखा गया, जहां विविध विचारधाराओं का सम्मानपूर्वक आदान-प्रदान होता रहा।
आज के संदर्भ में प्रासंगिकता
आज जब भारतीय लोकतंत्र कई नई चुनौतियों और अवसरों का सामना कर रहा है, तब डॉ. बलराम जाखड़ जैसी शख्सियतों का स्मरण हमें पुनः लोकतांत्रिक मूल्यों की ओर लौटने की प्रेरणा देता है। उनके द्वारा स्थापित उच्च मानकों को अपनाकर संसद को अधिक सशक्त और उत्तरदायी बनाया जा सकता है।
संसद भवन में आयोजन की विशेषता
आज आयोजित श्रद्धांजलि समारोह केवल एक पारंपरिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह लोकतंत्र के प्रति गहरी आस्था और आदर की अभिव्यक्ति भी था। केंद्रीय कक्ष में मौजूद गणमान्यजनों की उपस्थिति यह सिद्ध करती है कि भारतीय लोकतंत्र अपने महापुरुषों को कभी नहीं भूलता।
राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने इस अवसर पर कहा कि डॉ. जाखड़ जैसे नेताओं की उपस्थिति लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए प्रेरणास्रोत रही है। वहीं लोकसभा महासचिव श्री उत्पल कुमार सिंह ने उन्हें भारतीय संसदीय परंपराओं का सजग संरक्षक बताया।
जनमानस में सम्मान और लोकप्रियता
डॉ. बलराम जाखड़ केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि जनमानस के नेता थे। उन्हें जनता से जोड़ने वाला सहज और सरल व्यवहार विरले राजनेताओं में से एक बनाता है। उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना और अपने हर निर्णय में जनहित को सर्वोपरि रखा।
उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे दो बार लोकसभा के अध्यक्ष पद पर निर्विरोध चुने गए, जो भारतीय लोकतंत्र की एक असाधारण घटना है।
निष्कर्ष
डॉ. बलराम जाखड़ की जयंती के अवसर पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतंत्र के प्रति हमारी जिम्मेदारी और कृतज्ञता का प्रतीक था। ऐसे महान नेताओं की स्मृति से न केवल आज की पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है, बल्कि आने वाले समय में भी लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव मजबूत होती है।
भारतीय लोकतंत्र को नई दिशा देने में डॉ. जाखड़ का योगदान अमूल्य है। उनके जीवन और कार्य हमें सिखाते हैं कि नीति, सिद्धांत और सेवा की भावना से परिपूर्ण राजनीति ही सच्चे लोकतंत्र की आधारशिला है।