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बिहार में कर्ज वसूली का शर्मनाक चेहरा: 10 साल की बच्ची की मौत से कांप उठा मधेपुरा

On: August 24, 2025 3:03 PM
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बिहार में कर्ज वसूली का शर्मनाक चेहरा: 10 साल की बच्ची की मौत से कांप उठा मधेपुरा
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मधेपुरा (बिहार): बिहार के मधेपुरा जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। कर्ज वसूली के नाम पर मानवता को तार-तार करने वाली यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाती है बल्कि यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर किस हद तक इंसान पैसों की हवस में अंधा हो सकता है।

मधेपुरा जिले के मुरलीगंज प्रखंड के मीरगंज गांव में 10 वर्षीय अंशु कुमारी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी। परिजन उसे तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए निकले, लेकिन रास्ते में उन्हें ऐसी घटना का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से बच्ची की जिंदगी बचाई नहीं जा सकी।

क्या हुआ था उस दिन?

परिवार के पास एक हीरो डीलक्स मोटरसाइकिल थी, जिसकी कुछ किस्तें बाकी थीं। परिजनों का आरोप है कि जब वे बच्ची को अस्पताल ले जा रहे थे, तभी रास्ते में कर्ज वसूली करने वाले लोग सामने आ गए। उन्होंने मोटरसाइकिल को रोक लिया और कहा कि पहले किस्त का पैसा दो, तभी आगे बढ़ने देंगे।

परिजनों ने हाथ जोड़कर गुहार लगाई कि बच्ची की हालत गंभीर है, पहले उसे अस्पताल पहुंचाने दें, बाद में किस्त चुका देंगे। लेकिन आरोप है कि वसूली करने वालों ने एक न सुनी। मोटरसाइकिल को रोककर बंधक बना लिया और परिवार को आगे बढ़ने नहीं दिया।

इसी दौरान बच्ची की हालत और बिगड़ गई और इलाज न मिलने की वजह से उसने दम तोड़ दिया।

गांव में मातम और गुस्से का माहौल

इस घटना के बाद पूरे इलाके में मातम पसर गया है। एक मासूम बच्ची की मौत ने ग्रामीणों को गुस्से से भर दिया है। लोग कह रहे हैं कि अगर इंसानियत जिंदा होती तो शायद अंशु आज जिंदा होती।

ग्रामीणों का कहना है कि कर्ज वसूली करने वालों की ऐसी करतूतें अब आम होती जा रही हैं। आए दिन गांव-गांव में किस्त वसूली के नाम पर दबाव, धमकी और उत्पीड़न की खबरें सुनने को मिलती रहती हैं।

सवालों के घेरे में जिला प्रशासन

यह घटना जिला प्रशासन के लिए भी बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासनिक लापरवाही और कर्ज वसूली पर सही निगरानी न होने की वजह से ऐसी घटनाएं घट रही हैं।

स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

फाउंडेशन ने दी मदद

घटना की जानकारी मिलने पर कुछ समाजसेवी संगठनों और फाउंडेशनों के प्रतिनिधि मृतका के घर पहुंचे। उन्होंने परिवार से मुलाकात की और आर्थिक मदद दी। साथ ही यह भी भरोसा दिलाया कि वे न्याय दिलाने की लड़ाई में परिवार के साथ खड़े रहेंगे।

कर्ज वसूली की व्यवस्था पर बड़ा सवाल

यह मामला सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह पूरे तंत्र पर सवाल उठाता है। क्या वसूली एजेंटों को इतना अधिकार मिल गया है कि वे किसी की जान तक ले लें? क्या कानून और व्यवस्था केवल कागजों तक सीमित है?

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार समेत देश के कई राज्यों में माइक्रोफाइनेंस कंपनियां, बैंक और निजी कर्ज वसूली एजेंट ग्रामीणों पर इस तरह दबाव बनाते हैं कि लोग मानसिक और सामाजिक तनाव में आ जाते हैं।

बिहार में बढ़ती कर्ज वसूली की घटनाएं

पिछले कुछ वर्षों में बिहार के अलग-अलग जिलों से कर्ज वसूली से जुड़ी घटनाएं सामने आती रही हैं। कई बार वसूली एजेंट लोगों के घरों में पहुंचकर गाली-गलौज, धमकी और मारपीट तक कर देते हैं।

विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी और मजबूरी की वजह से लोग जल्दी लोन ले लेते हैं, लेकिन जब चुकाने की बारी आती है तो ब्याज और किस्त का बोझ उन्हें तोड़ देता है।

कानून क्या कहता है?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने साफ निर्देश दिए हैं कि कोई भी बैंक या माइक्रोफाइनेंस कंपनी कर्ज वसूली के नाम पर दबाव, धमकी या हिंसा का इस्तेमाल नहीं कर सकती। इसके बावजूद जमीनी स्तर पर हालात कुछ और ही तस्वीर पेश करते हैं।

कानून के जानकारों का कहना है कि अगर किसी परिजन की मौत इस तरह की परिस्थितियों में होती है, तो यह आपराधिक लापरवाही और गैरकानूनी वसूली का मामला है। दोषियों पर हत्या जैसे संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज होना चाहिए।

परिवार की व्यथा

अंशु कुमारी के पिता ने रोते हुए कहा, “हमने बहुत समझाया कि पहले बच्ची को अस्पताल ले जाने दें। लेकिन उन्होंने एक न सुनी। अगर हमें रोकते नहीं, तो शायद मेरी बेटी बच जाती।”

यह शब्द सुनकर हर कोई दहल गया। गांव के लोग कहते हैं कि यह सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को झकझोर देने वाली घटना है।

लोगों की अपील

ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने मधेपुरा जिला प्रशासन से अपील की है कि इस घटना की तत्काल जांच हो और पीड़ित परिवार को न्याय मिले। साथ ही यह भी मांग की जा रही है कि भविष्य में किसी और परिवार को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

निष्कर्ष

मधेपुरा की यह घटना केवल एक बच्ची की मौत नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज और सिस्टम पर गहरे सवाल खड़े करती है। जब पैसे की भूख इंसानियत से बड़ी हो जाए, तब समाज की आत्मा मर जाती है।

अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन और सरकार इस मामले को किस गंभीरता से लेती है। क्या दोषियों को कड़ी सजा मिलेगी या यह मामला भी समय के साथ दब जाएगा?

Sachcha Samachar Desk

Sachcha Samachar Desk वेबसाइट की आधिकारिक संपादकीय टीम है, जो देश और दुनिया से जुड़ी ताज़ा, तथ्य-आधारित और निष्पक्ष खबरें तैयार करती है। यह टीम विश्वसनीयता, ज़िम्मेदार पत्रकारिता और पाठकों को समय पर सही जानकारी देने के सिद्धांत पर काम करती है।

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