हाल ही में रिलीज़ हुई सूर्या और बॉबी देवल की फिल्म कंगवा ने दर्शकों के बीच काफी चर्चा बनाई है। फिल्म के ट्रेलर ने जितना उत्साह बढ़ाया था, फिल्म ने रिलीज़ के बाद उम्मीदों पर कितना खरा उतरा, ये एक बड़ा सवाल बन गया है। अगर आप भी फिल्म के पहले हाफ के शानदार विज़ुअल्स से प्रभावित हुए थे, तो शायद फिल्म का दूसरा भाग आपको निराश कर सकता है।
फिल्म की शुरुआत और विज़ुअल्स का प्रभाव
कंगवा का ट्रेलर और प्रारंभिक फुटेज वाकई प्रभावित करने वाले थे। फिल्म के विज़ुअल्स, प्रोडक्शन डिजाइन, सेट्स, और लोकेशंस ने बड़े पर्दे पर एक शानदार इम्प्रेशन छोड़ा था। खासकर, फिल्म के पहले कुछ मिनटों में हम एक रहस्यमयी सीक्रेट फैसिलिटी के दृश्य देखते हैं, जिसमें बच्चों पर हो रहे एक्सपेरिमेंट को दिखाया जाता है। यह काफी दिलचस्प लग रहा था, और दर्शकों को फिल्म के विषय और उसके बड़े पैमाने से जुड़ी संभावनाओं को लेकर उम्मीदें थीं। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ी, ये उम्मीदें पूरी नहीं हो पाईं।
कहानी और समय के दो फ्रेम्स
फिल्म की कहानी दो समय फ्रेम्स में बांटी गई है: एक 2024 का प्रेजेंट डे और दूसरा 1070 का प्राचीन काल। इस दोहरे समय के बीच की यात्रा ने कुछ हद तक फिल्म को दिलचस्प बनाने की कोशिश की, लेकिन कई जगह यह प्रयास कमजोर साबित हुआ। फिल्म में पांच ट्राइब्स के बीच सत्ता की लड़ाई और कंगवा ट्राइब की विशेष स्थिति को दिखाने का प्रयास किया गया है, लेकिन कहानी में कोई नई या आकर्षक ट्विस्ट नहीं है।
फिल्म का मूल विषय “पुनर्जन्म” और “सत्तात्मक संघर्ष” के इर्द-गिर्द घूमता है, लेकिन यह चीज़ें उतनी प्रभावी नहीं हो पातीं जितना दर्शकों को उम्मीद थी। प्राचीन समय का ड्रामा और 2024 के बीच की कनेक्टिविटी सिर्फ खींचतान और स्टीरियोटाइपेड एक्शन सीन्स में बंट गई है। फिल्म का अंत भी अनमोल या दिलचस्प नहीं था।
तकनीकी खामियां: वीएफएक्स और ऑडियो
फिल्म में एक बड़ा पहलू उसका तकनीकी पक्ष था, जहां वीएफएक्स और ऑडियो दोनों ही महत्वपूर्ण थे। फिल्म का वीएफएक्स कभी-कभी अच्छा था, लेकिन कई बार यह फ्लैट भी महसूस हुआ। 3D विज़ुअल्स का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन उनका प्रभाव ज्यादा देर तक नहीं बना। खासकर, फिल्म के एक्शन सीन में 3D का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया था, जो धीरे-धीरे दर्शकों को उबाऊ और ज़्यादा हो गया। एक्शन के दौरान हर 10-15 मिनट में कुछ न कुछ “पानी” या “पत्थर” दिखाया जाता था, जो थोड़ी देर बाद बेहद कष्टप्रद लगने लगता है।
इसके अलावा, फिल्म में सूर्या और बॉबी देवल की आवाज़ का मेल उनके किरदारों से मेल नहीं खाता था। खासकर, बॉबी देवल की आवाज़ में एक अजीब सी ध्वनि थी, जो न केवल उनकी शख्सियत से मेल नहीं खाती थी, बल्कि दर्शकों को भ्रमित भी करती थी। यह तकनीकी गड़बड़ी पूरी फिल्म के अनुभव को कमजोर बनाती है, और स्पष्ट रूप से यह दिखता है कि फिल्म के हिंदी डब वर्जन पर उतनी मेहनत नहीं की गई जितनी कि तमिल वर्जन में की गई होगी।
अभिनय: सूर्या और बॉबी देवल की परफॉर्मेंस
सूर्या और बॉबी देवल दोनों ही अपने-अपने किरदारों में अच्छे थे, लेकिन उनके प्रदर्शन में कुछ खास आकर्षण नहीं था। सूर्या का डबल रोल ठीक था, लेकिन उनकी आवाज़ में वह मजबूती नहीं थी, जो कि उनके किरदार से अपेक्षित थी। बॉबी देवल का किरदार भी अच्छे से लिखा गया था, लेकिन उनकी आवाज़ का प्रोसेसिंग इतना खराब था कि उनका डायलॉग डिलीवरी प्रभावी नहीं हो सका।
फिल्म में दिशा पाटनी का योगदान केवल एक गाने और कुछ कॉमिक सीन तक सीमित था। उनका अभिनय भी प्रभावित करने में असफल रहा, और फिल्म में उनका स्क्रीन स्पेस बहुत कम था।
कहानी की लंबाई और संपादन
फिल्म का संपादन भी एक बड़ा मुद्दा था। एक्शन सीन खासकर बहुत लंबा खींचा गया था, जैसे एक विलन के लटकते हुए शॉट को बार-बार दिखाया गया, जबकि स्थिति में कोई बदलाव नहीं हो रहा था। फिल्म का क्लाइमेक्स भी बेहद घिसा-पिटा था, और यह इतना लम्बा खिंच गया कि वह अंततः उबाऊ हो गया।
एक्शन और फाइट सीन्स
फिल्म के एक्शन सीन के मामले में बहुत अधिक अपेक्षाएं थीं, लेकिन यह भी निराशाजनक साबित हुआ। जो एक्शन और फाइट सीन ट्रेलर में देखने को मिले थे, वे फिल्म में वास्तव में बहुत साधारण थे। जब एक्शन के हाई पॉइंट्स आते हैं, तो उसे इस तरह से कट कर दिया जाता था कि दर्शकों को पूरा अनुभव नहीं मिलता था।
कुल मिलाकर अनुभव
अगर आप एक विशाल बजट और बड़े स्केल की फिल्म देखने के इच्छुक हैं, तो कंगवा आपके लिए एक बार देखी जा सकती है। इसके विज़ुअल्स और प्रोडक्शन डिजाइन अच्छे हैं, लेकिन फिल्म की कमजोर कहानी, तकनीकी खामियां और बिना खींचे गए एक्शन सीन इसे एक औसत फिल्म बना देती हैं।
जो लोग साउथ फिल्मों के बड़े एक्शन और ड्रामा पसंद करते हैं, वे शायद इस फिल्म का लुत्फ उठा सकें, लेकिन अगर आप एक बेहतरीन कहानी और मजबूत स्क्रीनप्ले की तलाश में हैं, तो आपको कंगवा से ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए।
फिल्म का हिंदी वर्जन विशेष रूप से कमजोर था और तकनीकी मुद्दों के कारण इसे सीमित दर्शकों के लिए ही देखना सुझाया जा सकता है।