भारत की राजनीति में धर्म और समाज के मुद्दे अक्सर चुनावी सफलता के लिए महत्वपूर्ण उपकरण बन चुके हैं। खासकर जब बात किसी राज्य के विधानसभा चुनावों की हो, तो यह मुद्दा और भी उभर कर सामने आता है। झारखंड के विधानसभा चुनाव में भी यही देखने को मिल रहा है। झारखंड चुनावी राजनीति में धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों का खेल एक बार फिर छेड़ा गया है। भाजपा के नेताओं के बयानों से यह साफ संकेत मिलते हैं कि आगामी चुनाव में घुसपैठ और धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण को मुद्दा बनाया जाएगा।
घुसपैठ और धर्म के आधार पर राजनीति का नया तरीका
असम के मुख्यमंत्री हेमंता बिस्वा शर्मा ने हाल ही में झारखंड में दिए गए अपने बयान में अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात की थी। उनका कहना था कि अगर भाजपा राज्य में सत्ता में आई तो अवैध घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे, खासकर बांगलादेश से होने वाली घुसपैठ को लेकर। बांगलादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को भाजपा ने हमेशा से अपनी चुनावी राजनीति का हिस्सा बनाया है, और अब झारखंड में यह मुद्दा एक बार फिर उठाया जा रहा है।
हेमंता शर्मा का कहना था कि बांगलादेश से अवैध घुसपैठियों की वजह से राज्य में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को प्रभावित किया जा रहा है। हालांकि, उनके बयान में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि वे किस समुदाय की बात कर रहे थे, लेकिन उनके भाषण के बाद यह सवाल उठने लगा कि क्या यह बयान मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए दिया गया था। विपक्षी दलों ने इस पर तीव्र प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि इस तरह के बयान समाज में नफरत और विभाजन फैलाने का काम करते हैं।
इंडिया गठबंधन, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस, और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) शामिल हैं, ने चुनाव आयोग से इस बयान को लेकर शिकायत की है। गठबंधन का कहना है कि हेमंता शर्मा का बयान जानबूझकर पूरे मुस्लिम समुदाय को घुसपैठियों के रूप में पेश करता है, जो चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है।
सांप्रदायिक राजनीति की बढ़ती संभावनाएं
भाजपा के इस तरह के बयानों के बाद विपक्षी दलों ने यह भी आरोप लगाया है कि भाजपा के पास राज्य के विकास और जनकल्याण के मुद्दों पर बात करने के बजाय केवल सांप्रदायिक और ध्रुवीकरण की राजनीति करने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया जा रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि उनका उद्देश्य सिर्फ अवैध घुसपैठ पर रोक लगाना है, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि भाजपा इस मुद्दे को लेकर केवल मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है, और इस प्रकार राज्य के समाज में घृणा और विभाजन फैलाने की कोशिश कर रही है।
यह कोई नई बात नहीं है कि चुनावी राजनीति में धर्म और जाति के आधार पर समाज को बांटने की कोशिश की जाती है, लेकिन झारखंड में इसे लेकर एक नया मोड़ आया है। भाजपा के नेताओं ने खुले तौर पर यह कहना शुरू कर दिया है कि झारखंड में “घुसपैठियों” का समर्थन करने वाली सरकार को उखाड़ फेंकना चाहिए। इससे स्पष्ट है कि भाजपा का ध्यान अब राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर मुस्लिम समुदाय, पर ही है, और यह राजनीति उनके वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए की जा रही है।
झारखंड के आदिवासी और सामाजिक मुद्दे: भाजपा का जिक्र
धर्म और घुसपैठ के मुद्दों के अलावा भाजपा ने झारखंड में आदिवासी समुदाय के अधिकारों पर भी सवाल उठाया है। हेमंता शर्मा ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने में विफलता दिखाई है। भाजपा का कहना है कि वे आदिवासी समुदाय के लिए काम करेंगे और उनके अधिकारों का संरक्षण करेंगे। लेकिन यह भी सवाल उठता है कि भाजपा के लिए आदिवासी समुदाय की चिंता अचानक क्यों बढ़ी, जबकि वे हमेशा से इस समुदाय को लेकर चुप रहे हैं।
आदिवासी समुदाय का मुद्दा झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और भाजपा का इस पर रुख पूरी तरह से चुनावी लाभ लेने की कोशिश हो सकती है। वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा केवल आदिवासी मुद्दे को उठाकर झारखंड के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने का प्रयास कर रही है।
चुनाव आयोग और कानूनी सवाल
जहां भाजपा के बयान से यह स्पष्ट होता है कि धर्म और घुसपैठ का मुद्दा चुनावी प्रचार का हिस्सा बनेगा, वहीं यह भी सवाल उठता है कि चुनाव आयोग इस मामले में क्या कदम उठाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट किया था कि चुनावी प्रक्रिया में धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर वोट मांगना संविधान के खिलाफ है। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि यदि कोई उम्मीदवार धर्म के नाम पर वोट मांगता है, तो उसकी उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है।
हालांकि, चुनाव आयोग द्वारा इस पर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग इस मामले में निष्क्रिय है और चुनावी नियमों का पालन सुनिश्चित करने में विफल हो रहा है। अगर आयोग समय रहते इस मामले पर कोई निर्णय नहीं लेता, तो यह चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाएगा।
राजनीति में तथ्य और फर्जी दावे
भाजपा के नेताओं द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों में से एक यह भी है कि झारखंड में बांगलादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को क्यों बार-बार उठाया जा रहा है, जबकि असम और बंगाल में इस मुद्दे को लेकर भाजपा पहले ही चुप्पी साध चुकी है। असम में नागरिकता रजिस्टर (NRC) का मुद्दा काफी गरमाया था, और इसके चलते भाजपा को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा था। अब उसी मुद्दे को झारखंड में फिर से पेश किया जा रहा है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा सिर्फ समाज में डर फैलाने के लिए इस मुद्दे को जीवित रख रही है।
इसके अलावा, भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र में “यूनिफॉर्म सिविल कोड” (UCC) को भी शामिल किया था। पहले कहा गया था कि पूरे देश में एक समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी, लेकिन अब झारखंड में इसे लेकर अलग रुख अपनाया जा रहा है। भाजपा का कहना है कि वे झारखंड में आदिवासी समुदाय को छोड़कर यूसीसी लागू करेंगे, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या ये वादे केवल चुनावी लाभ के लिए किए जा रहे हैं।
निष्कर्ष:
झारखंड चुनाव में भाजपा के नेताओं द्वारा धर्म, घुसपैठ और समाजिक मुद्दों का चुनावी एजेंडा बनाना चुनावी राजनीति का एक नया तरीका बनता जा रहा है। भाजपा का यह कदम न केवल राज्य के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर सकता है, बल्कि इससे समाज में नफरत और विभाजन की स्थिति भी पैदा हो सकती है। विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा के बयान समाज में तनाव बढ़ा रहे हैं, और चुनावी प्रचार को धर्म के आधार पर ध्रुवीकृत किया जा रहा है।
चुनाव आयोग को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बना रहे। जनता को भी यह समझने की जरूरत है कि धर्म और घुसपैठ के मुद्दों के बजाय असली मुद्दे— जैसे महंगाई, बेरोजगारी और राज्य के विकास—पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।