1945 का समय, जब भारत आजादी की लड़ाई के उफान पर था, चारों ओर अंग्रेजों के जुल्म और देशवासियों के संघर्ष की गूंज थी। इस कठिन समय में, एक युवा व्यवसायी, कमल नयन बजाज, ने अपने मन में एक अद्वितीय सपना पाला—भारत में पहला स्कूटर बनाने का। उस समय भारत में स्कूटर की कोई परंपरा नहीं थी, और यही वह समय था जब जमुनालाल बजाज ने 1926 में बछराज फैक्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की थी। यह कंपनी शुरुआती दिनों में कपास के व्यापार से जुड़ी थी, और जमुनालाल एक उद्यमी के साथ-साथ महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी भी थे।
स्कूटर के सपने की नींव
कमल नयन ने देखा कि यूरोप में स्कूटरों की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने यह तय किया कि भारतीय लोगों को भी इस सुविधा का लाभ मिलना चाहिए। 1945 में, उन्होंने बछराज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में स्कूटर्स का आयात करना था। लेकिन आजादी से पहले, भारतीय सरकार से अनुमति प्राप्त करना एक चुनौती थी।
15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता ने बछराज ट्रेडिंग को स्कूटर आयात करने की अनुमति दी। 1948 में, यह कंपनी भारत में स्कूटर बेचने वाली पहली कंपनी बन गई। हालाँकि, ये इंपोर्टेड वेस्पा स्कूटर महंगे थे और भारतीय सड़कों के लिए उपयुक्त नहीं थे। कमल नयन ने महसूस किया कि अगर स्कूटर्स का निर्माण भारत में किया जाए तो वे सस्ते और अधिक उपयुक्त हो सकते हैं।
स्वदेशी निर्माण की दिशा में कदम
कमल नयन ने 1959 में मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस प्राप्त किया और 1960 में पियाजियो के साथ मिलकर W 150 स्कूटर का उत्पादन शुरू किया। यह स्कूटर विशेष रूप से भारतीय सड़कों के लिए डिजाइन किया गया था और इसकी कीमत भी प्रतिस्पर्धी थी। इसके लॉन्च ने भारतीय बाजार में हलचल मचा दी और वेस्पा 150 जल्द ही सबसे लोकप्रिय स्कूटर बन गया।
चेतक की सफलता और उसके बाद
1971 में, पियाजियो के साथ बजाज का कॉन्ट्रैक्ट समाप्त हो गया। अब कमल नयन के बेटे राहुल बजाज को अपने दम पर स्कूटर बनाना था। राहुल ने निर्णय लिया कि बजाज अपनी खुद की स्कूटर बनाएगा और इस तरह, 1972 में चेतक का जन्म हुआ। चेतक ने जल्दी ही बाजार में धूम मचा दी। इसके विज्ञापन का जिंगल “हमारा बजाज” हर बच्चे की जुबान पर था।
बजाज चेतक ने भारतीय बाजार में 25 वर्षों तक राज किया। इसकी लोकप्रियता के पीछे कई कारण थे: इसका मजबूत डिज़ाइन, सस्ती कीमत, और शानदार मार्केटिंग। लेकिन 90 के दशक के मध्य में, चेतक की बिक्री में गिरावट आने लगी।
बजाज चेतक का पतन
चेतक की लोकप्रियता में गिरावट के पीछे कई कारण थे। पहला, इसका डिज़ाइन और वजन वितरण बहुत अच्छा नहीं था। इसके इंजन का एक साइड से बाहर निकला होना स्कूटर को असंतुलित बनाता था। दूसरी ओर, जैसे-जैसे नए मोटरसाइकिल ब्रांड्स जैसे यामाहा RX100 और हीरो होंडा स्प्लेंडर बाजार में आए, युवा ग्राहकों ने स्कूटरों की जगह मोटरसाइकिलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया।
1984 में, बजाज ने कावासाकी के साथ मिलकर मोटरसाइकिल बनाने का निर्णय लिया। 1986 में उन्होंने अपनी पहली मोटरसाइकिल लॉन्च की, लेकिन फिर भी चेतक की बिक्री में कमी आई। कंपनी ने चेतक के कई मॉडल लॉन्च किए, लेकिन इनमें से कोई भी सफल नहीं हुआ।
कठिनाईयों का सामना और नया नेतृत्व
1991 में भारत में लिबरलाइजेशन के बाद, नए विदेशी ब्रांड्स ने बाजार में प्रवेश किया। इससे प्रतियोगिता और बढ़ गई। बजाज उस समय गंभीर संकट में था, लेकिन तभी राहुल बजाज के बेटे, राजीव बजाज ने कंपनी की कमान संभाली। राजीव ने महसूस किया कि बढ़ते प्रतिस्पर्धा में अपनी पहचान बनाने के लिए कंपनी को नए उत्पादों की आवश्यकता है।
उन्होंने अपने पहले पांच साल आर एंड डी विभाग में बिताए। उन्होंने देखा कि बाजार में या तो हल्की मोटरसाइकिल्स थीं या फिर बड़ी क्लासिक बाइक। इस समझ के साथ, बजाज ने लाइट वेट बाइक्स पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया। 2001 में, बजाज ने अपनी नई बाइक लॉन्च की, जो कि भारतीय बाजार में बेहद सफल रही।
वर्तमान में बजाज ऑटो
आज, बजाज ऑटो केवल स्कूटर और मोटरसाइकिल ही नहीं बनाता, बल्कि यह केटीएम और कावासाकी जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ भी सहयोग कर रहा है। बजाज अब भारत के सबसे बड़े टू-व्हीलर निर्यातकों में से एक है, जिसकी बाइक्स 90 से अधिक देशों में बेची जाती हैं। वित्तीय वर्ष 2024 में, बजाज ने लगभग 16 लाख यूनिट्स का निर्यात किया।
निष्कर्ष
बजाज ऑटो की कहानी सिर्फ एक कंपनी की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारतीय उद्यमिता, संघर्ष, और नवाचार की भी एक प्रेरणादायक गाथा है। कठिनाइयों का सामना करते हुए, बजाज ने न केवल भारतीय बाजार में अपनी पहचान बनाई, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि संघर्ष और दृढ़ता के माध्यम से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है।