उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हाल ही में पुलिस हिरासत में एक और मौत की घटना ने सबको हिलाकर रख दिया है। यह घटना अमन गौतम की मौत के बाद आई है, जब मोहित पांडे की पुलिस हिरासत में मृत्यु हुई। पुलिस इस मामले को सामान्य घटना बताने की कोशिश कर रही है, जबकि मोहित का परिवार इसके खिलाफ आवाज उठा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे ‘टॉर्चर रूम’ का नाम दिया है, जहाँ बेकसूर लोगों पर अत्याचार हो रहे हैं। यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में यूपी के पुलिस थाने टॉर्चर रूम बन गए हैं?
मोहित पांडे की संदिग्ध मौत
मोहित पांडे की मौत की घटनाओं पर गहन चिंता जताई जा रही है। पुलिस का कहना है कि मोहित की मौत सामान्य परिस्थितियों में हुई थी, लेकिन उसके परिवार का आरोप है कि उसे टॉर्चर किया गया था। मोहित के भाई शोभाराम ने यह दावा किया कि पुलिस ने मोहित को हिरासत में पीटा और उसके साथ बर्बरता की। पुलिस द्वारा जारी सीसीटीवी फुटेज में मोहित को जमीन पर गिरा हुआ दिखाया गया है, लेकिन परिवार का कहना है कि यह फुटेज अधूरा है और वास्तविकता को छिपाने की कोशिश की जा रही है।
समाज और मीडिया की प्रतिक्रिया
इस तरह की घटनाओं पर समाज और मीडिया की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण होती है। जब ऐसी घटनाएँ विपक्षी शासित राज्यों में होती हैं, तो मीडिया तुरंत सक्रिय हो जाता है और उन्हें प्रमुखता से उठाया जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश में हुई दो मौतों पर कोई विशेष चर्चा नहीं हो रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस मुद्दे पर पुलिस की क्रूरता की आलोचना की है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह प्रतिक्रियाएँ पर्याप्त हैं? क्या इस मुद्दे पर व्यापक जन जागरूकता की आवश्यकता नहीं है?
रोशनी जैसवाल का मामला
दूसरी ओर, रोशनी जैसवाल का मामला भी चिंता का विषय है। रोशनी, जो कांग्रेस की नेता हैं, को लगातार बलात्कार की धमकियाँ मिल रही थीं। जब उन्होंने इन धमकियों के खिलाफ आवाज उठाई, तो उनके परिवार के सदस्यों को जेल में डाल दिया गया। यह अत्यंत चिंताजनक है कि जो लोग खुद को सुरक्षित मानते हैं, उन्हें पुलिस के संरक्षण में इतनी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रोशनी का आरोप है कि सैफरन राजेश सिंह, जिसने उन्हें धमकियाँ दी थीं, उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि कानून के रक्षक खुद ही अपराधियों की तरफदारी कर रहे हैं।
पुलिस का संवेदनहीन रवैया
पुलिस के बयान भी इस मामले में चिंताजनक हैं। पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट में मोहित की मौत के कारण स्पष्ट नहीं किए गए हैं, और मामले की जांच का जिम्मा थाना इंचार्ज को सौंपा गया है, जिसे सस्पेंड कर दिया गया है। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह सस्पेंशन वास्तव में न्याय की दिशा में एक कदम है, या यह सिर्फ एक औपचारिकता है? पुलिस द्वारा किए गए कार्यों की पारदर्शिता पर सवाल उठता है।
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा
इस घटना में एक और गंभीर मुद्दा सामने आया है जब मोहित की लाश पर भाजपा के एक नेता ने पैसे रखे। यह कार्य न केवल संवेदनहीनता का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि नेताओं के लिए मानवता की कोई अहमियत नहीं रह गई है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि जब सत्ता के नशे में डूबे लोग इस तरह की हरकतें करते हैं, तो समाज में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में पुलिस की क्रूरता और न्याय की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। जब जो लोग कानून के रखवाले हैं, वही अत्याचार करने लगें, तो समाज का क्या होगा? यदि हम इस स्थिति को नहीं बदलते, तो हमें भविष्य में और भी गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा। यह वक्त है कि समाज और सरकार दोनों इस पर गंभीरता से विचार करें और एक ठोस कदम उठाएं। केवल बहस और आलोचना से कुछ नहीं होगा, आवश्यक है कि सच्चे न्याय की स्थापना के लिए एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया जाए। अगर हम एक बेहतर समाज की कल्पना करते हैं, तो हमें सभी के लिए सुरक्षा और न्याय की व्यवस्था को सुनिश्चित करना होगा।