बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक कार्यक्रम में बिहार की एनडीए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार लोक भाषा, लोक विधा, लोक संस्कृति और पारंपरिक लोक कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। उनके अनुसार, अब लोक कलाकारों को सरकारी कार्यक्रमों में प्रदर्शन करने के लिए निःशुल्क काम करने के लिए कहा जा रहा है, जो उनकी मेहनत का अपमान है।
तेजस्वी यादव का यह बयान तब आया है जब बिहार में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। इन कार्यक्रमों में बाहरी, अनजान फिल्मी सितारों को आमंत्रित किया जा रहा है, जिन्हें लाखों रुपये दिए जा रहे हैं। यादव ने सवाल उठाया कि जब सरकार फिल्मी सितारों को इतनी धनराशि दे सकती है, तो स्थानीय कलाकारों को उनके काम का उचित मूल्य क्यों नहीं दिया जा रहा है।
लोक कलाकारों की अनदेखी
तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार की संस्कृति और लोक कला को बढ़ावा देने के बजाय, सरकार केवल फिल्मी सितारों के पीछे भाग रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, तो स्थानीय कलाकारों को आमंत्रित करने के बजाय बाहरी सितारों को बुलाया जाता है, जो न केवल पैसे खर्च करते हैं बल्कि बिहार की सांस्कृतिक पहचान को भी कमजोर करते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि लोक कलाकारों को बिना किसी मेहनताना के काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। “क्या यह उचित है कि हम अपने लोक कलाकारों को नकार दें और उन्हें उनके काम का उचित मूल्य न दें?” तेजस्वी ने यह सवाल उठाया। उनका कहना था कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करे और उनकी मेहनत का सही मूल्य चुकाए।
डबल इंजन सरकार का प्रदर्शन
तेजस्वी यादव ने एनडीए सरकार को “डबल इंजन पॉवर्ड सरकार” कहते हुए उसकी कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि अगर सरकार सच में डबल इंजन से चल रही है, तो उसे लोक कलाकारों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिहार की संस्कृति की रक्षा के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
“अगर सरकार केवल बाहरी सितारों को बुलाकर उन पर लाखों रुपये खर्च करती है, तो यह एक असंतुलित स्थिति है। हमें अपने लोक कलाकारों की कला और संस्कृति को सहेजने के लिए उन्हें भी प्रोत्साहित करना होगा,” तेजस्वी ने जोर दिया।
सांस्कृतिक पहचान का संकट
तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि यदि सरकार ने इस दिशा में सुधार नहीं किया, तो बिहार की सांस्कृतिक पहचान संकट में पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि लोक कला और संस्कृति केवल एक विरासत नहीं है, बल्कि यह समाज की पहचान है। लोक कलाकार अपने क्षेत्र की संस्कृति को जीवित रखते हैं, और उनकी अनदेखी करना एक गंभीर समस्या है।
बिहार में विभिन्न प्रकार के लोक कलाकार हैं, जैसे कि नाट्य कलाकार, गायक, नर्तक और शिल्पकार। ये कलाकार अपनी कला के माध्यम से समाज को जागरूक करते हैं और स्थानीय परंपराओं को जीवित रखते हैं। लेकिन जब उन्हें उचित सम्मान और मेहनताना नहीं मिलता, तो यह उनके लिए मुश्किल हो जाता है।
लोक संस्कृति का महत्व
बिहार की लोक संस्कृति में अनेक रंग हैं। चाहे वह मिथिला पेंटिंग हो, भोजपुरिया गाने हों या फिर अन्य पारंपरिक नृत्य, इन सभी का अपने आप में एक विशेष महत्व है। लोक कलाकार इन संस्कृतियों को सहेजने का कार्य करते हैं, और यदि सरकार इनकी अनदेखी करती है, तो यह संस्कृति धीरे-धीरे समाप्त होती जाएगी।
तेजस्वी ने कहा कि अगर सरकार लोक कलाकारों को प्रोत्साहित नहीं करती, तो यह उनके लिए एक गंभीर संकट बन जाएगा। “हमें अपनी संस्कृति को बचाने के लिए अब से ही कदम उठाने होंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी लोक कला और संस्कृति हमेशा जीवित रहे,” उन्होंने कहा।
सरकार से अपेक्षाएं
तेजस्वी यादव ने सरकार से यह अपेक्षा की कि वह लोक कलाकारों को उचित मेहनताना और सम्मान प्रदान करे। उन्होंने कहा कि यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के सभी वर्गों को मिलकर लोक कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए काम करना होगा।
“हमें अपने लोक कलाकारों को पहचानने और उनकी मेहनत को मान्यता देने की आवश्यकता है। यह समय है जब हम अपने कलाकारों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और उन्हें उचित सम्मान दें,” तेजस्वी ने कहा।
निष्कर्ष
तेजस्वी यादव का यह बयान बिहार की संस्कृति और लोक कला को सहेजने के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। यदि बिहार सरकार अपने लोक कलाकारों की अनदेखी करती है, तो यह केवल उनकी नहीं, बल्कि पूरे राज्य की सांस्कृतिक पहचान की अनदेखी होगी। लोक कला और संस्कृति को जीवित रखने के लिए हमें अपने स्थानीय कलाकारों को पहचानने और उनका समर्थन करने की आवश्यकता है। इस दिशा में सरकार के कदम बेहद महत्वपूर्ण होंगे, ताकि बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजा जा सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया जा सके।
बिहार की पहचान उसकी संस्कृति में निहित है, और इसे बचाने का कार्य केवल सरकार का नहीं, बल्कि समाज के हर सदस्य का है। अगर हम अब नहीं जागेंगे, तो भविष्य में हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। यह समय है कि हम अपने लोक कलाकारों का सम्मान करें और उनकी कला को सहेजें।