धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, शक्ति की देवी मां दुर्गा हर वर्ष नवरात्रि के पावन पर्व पर भक्तों का कल्याण करने के लिए धरती पर आती हैं। नवरात्रि के नवमी तिथि का विशेष महत्व है, जब देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा नव कन्याओं के रूप में की जाती है।
हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि इस दिन पूजा के लिए कन्याओं की उम्र 2 से 8 वर्ष के बीच होनी चाहिए। यह परंपरा इस मान्यता पर आधारित है कि युवा कन्याएं देवी का स्वरूप होती हैं और उनका पूजन पुण्यदायी माना जाता है।
नवरात्रि के दौरान नौ दिन तक मां दुर्गा की आराधना विधि-विधान से की जाती है। इस पर्व का उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाना ही नहीं, बल्कि समाज में कन्याओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा को भी जागरूक करना है। कन्याओं को भोजन कराना और उनका आदर करना इस पूजा का अभिन्न हिस्सा है।
कन्याओं के पूजन में मां दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान रखा जाता है, जो हैं:
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चंद्रघंटा
- कूष्मांडा
- स्कंदमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
नवमी तिथि के दिन, विशेष रूप से, देवी के इन नौ रूपों की पूजा की जाती है। विद्वान पंडित श्रीधर शास्त्री के अनुसार, 12 अक्टूबर को सुबह 10:57 बजे तक नवमी तिथि रहेगी, जो पूजा के लिए शुभ मुहूर्त है।
इस प्रकार, नवरात्रि का पर्व न केवल आध्यात्मिक अनुभव का अवसर है, बल्कि यह हमें अपने समाज में कन्याओं के प्रति सम्मान और प्रेम प्रकट करने का भी अवसर प्रदान करता है। इस दौरान सभी भक्तों को चाहिए कि वे इस परंपरा को निभाएं और कन्याओं का आदर करते हुए उन्हें पूजा का मुख्य केंद्र बनाएं।